'डर ' - कुछ जज़्बात दिल से 



 डर एक नकारात्मक भावना है। यह संभावित खतरे के लिए एक सहज वृत्ति की प्रतिक्रिया की भावना है। हर व्यक्ति इसका अनुभव करता है और अलग अलग तरीके से करता है। अप्रिय होने की भावना से या खतरे की भावना से। डर हर प्राणी में उपस्थित होता है। यह कई बार उसके अस्तित्व की रक्षा के लिए भी आवश्यक होता है। डर जीवन में घटित होने वाली घटनाओं से सम्बंधित होता है। हमारे जीवन में बहुत सारे डर शामिल होते हैं जिनमें प्रमुख हैं ; असफलता का भय, किसी घटना का भय, अस्तित्व बनाये रखने का भय, कुछ खो देने का डर, बहिष्कार का डर, रिश्तों से जुडा डर, अवचेतन मन में उत्पन्न डर एवं अनिश्चितता का डर। 

हममें से हर कोई इनसे कभी ना कभी रूबरू होता है। हम इनमें से तक़रीबन हर डर को जीते हैं ; पर जाने क्यों दूसरों  के डर को समझ नहीं पाते। हम दूसरों के डर से अपरिचित ही रह जाते हैं। हम दूसरों की भावनाएँ समझने में बड़े कच्चे हैं। जिस भावना को हम खुद जी लेते हैं, उसे दूसरों के जीवन में देख, पहचान या समझ नहीं पाते। यदि किसी डर से जूझते व्यक्ति का हाथ थामकर देखो। 

अद्भुत बात यह है कि हम सिर्फ दो तरह के डर के साथ पैदा होते हैं; एक तेज आवाज का डर, दूसरा नीचे गिरने का डर। बाकी जितने भी डर को जीते हैं, वह सब हमारे उत्पन्न किये हुए हैं। इन सबको हमने खुद गले लगाया हुआ है।

हम इससे जितना भयभीत होते हैं, यह भी हम पर हावी होता जाता है। और तब तक हमारा पीछा करता है जब तक हम डटकर इसके समक्ष खड़े नहीं हो जाते। यह उसे अपने जीवन में प्रवेश देते हैं और उसको रोक लेते हैं। यह हम ही हैं जो उसका अस्तित्व बनाये रखते हैं। उसका होना क्षणिक होगा या दीर्घकालिक, यह हमपर ही निर्भर करता है। उसकी उम्र उतनी ही होती है जितना हम उसे दीर्घायु बनाते हैं। आपको याद भी है.. आपका सबसे पुराना डर कौनसा है? या जिसका सामना आपने कर लिया हो, फिर भी वह आपके जीवन में मौजूद हो?? 
डर को खुद से दूर करने के लिए आपको कुछ नहीं करना, बस उसका सामना करना है। 

अपनी सारी सकारात्मकता बटोरकर एवं डटकर उसके सामने खड़े हो जाइये.. वह तुरंत रफूचक्कर हो जाएगा। अपनी कल्पना को  सकारात्मक उड़ान भरने दीजिये। नये नये रचनात्मक कार्य कीजिए। आत्मविश्वास उसका धुर विरोधी है। दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है। उन्हें आमने सामने कर दीजिए..फिर देखिएगा ; कैसे नौ दो ग्यारह होता है यह भीरु डर। यह हमें सिर्फ तब तक आँख दिखाता है, जब तक हम उसे अहमियत देते हैं। हम मात्र अपने ही डर को नहीं दूसरों के डर को भी समझ सकें और दूर करने में सहायक हों। जिस क्षण पूरी हिम्मत से उसका सामना कर लेंगे, वह अलविदा हो जाएगा। डर के आगे मात्र जीत नहीं, ढेरों खुशियाँ, सपने, उम्मीदें और सफलता छुपी होती है। 

एक शादी शुदा स्त्री, जब किसी पुरूष से मिलती है

उसे जाने अनजाने मे अपना दोस्त बनाती है तो वो जानती है की न तो वो उसकी हो सकती है और न ही वो उसका हो सकता है वो उसे पा भी नही सकती और खोना भी...