एक ज़िद है दिल से कि फिर से नवोदय जाना चाहता हूँ
ज़िम्मेदारी को रख कर परे,
सिर्फ बस्ते का बोझ उठाना चाहता हूँ
स्कूल के गलियारों में दौड़ लगाना चाहता हूँ
एक बार के लिये ही सही मैं वक़्त को हराना चाहता हूँ
थाली को एक ऊंगली पर गोल- गोल घुमाते हुए
मेस की ओर जाना चाहता हूं
स्कूल के मैदान में कपड़े गंदे करना चाहता हूँ
किताबों पर कलम चलाना चाहता हूँ
नयी किताबों की महक दिल में बसाना चाहता हूँ
रोज़ मर्रा के काम को रख कर परे,
मॉनिटर बन जाना चाहता हूँ
अगर महीने दो महीने की गर्मी की छुट्टियाँ नसीब हो
मैं फिर से घर जाना चाहता हूँ
स्कूल के मंच पर फिर से अपना हुनर आज़माना चाहता हूँ
मैं कान पकड़, क्लास के बाहर खड़ा होना चाहता हूँ
सुबह सुबह उठ कर पढ़ना चाहता हूँ
परीक्षा के डर से लड़ना चाहता हूँ
ज़ोर ज़ोर से 'हम नवयुग की' गाना चाहता हूँ
एक ज़िद है दिल से कि फिर से नवोदय जाना चाहता हूँ।
~~~~Jagat~~~~

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