सौम्या की शादी को अभी चार दिन ही हुए थे। फिर भी उसने एक बात अच्छे से जान ली थी कि उसकी सासूमाँ दूसरी औरतों की तरह नहीं हैं और बहुत अच्छी हैं।हनीमून से आने के बाद सौम्या को भी ऑफिस जॉइन करना था। पहले ही दिन जब सौम्या ऑफिस से आई तो सासू माँ ने पहले पानी, फिर जूस और चाय के साथ घर के बने हल्के फुल्के स्नैक्स खिलाए।
सौम्या का पति गौतम उसके आने के कम से कम एक घंटे बाद आया। तो सौम्या जैसे ही गौतम के लिए पानी जूस आदि लाने के लिए उठी तो सासूमाँ बोली "थककर आई हो, आराम से बैठो। मैं लाती हूँ चाय नाश्ता। तो सौम्या से पहले गौतम ही बोल पड़ा "माँ बहू पर बड़ा प्यार आ रहा है। मुझसे आफिस से आते ही काम करवाती थी। बहू को बिगाड़ो मत"।
तो माँ बोली "जब मैं नौकरी करके थकी हारी घर आती थी तो तुम्हारी दादी या बुआ मुझे चाय तो दूर पानी तक नहीं पूछती थी। और ऊपर से अपने लिए चाय नाश्ता बनाने को कह देती थी। उसके बाद रात का खाना और फिर सुबह की तैयारी। सुबह सब काम करके जाती थी फिर नौकरी। न ढंग से खा पाती थी और न शरीर को आराम मिलता था। और तेरे पापा भी दादी की बातों में आकर बहुत दुख देते थे। और मैं बहुत बीमार हो गई थी।
तब तेरे नाना नानी अपने साथ ले गए थे। वहाँ जाकर आराम मिला और अच्छे खाने पीने से सेहत में सुधार हुआ। क्योंकि सिर्फ दवाई से कुछ नहीं होने वाला था। उसके बाद तुम्हारा जन्म हुआ। हमारी शादी के छः साल बाद। लेकिन तेरे पापा फिर भी नहीं सुधरे।मैंने सारी जिंदगी जो दुख भोगा, वो मैं अपनी बहू को नहीं देना चाहती और तू भी कान खोलकर सुन ले! बहू का साथ निभाना और हर काम में मदद करना क्योंकि जिस पर बीतती है उसी को पता चलता है।
जो तेरे लिए सब कुछ छोड़कर आई है। उसके लिए तू अपना अंहकार छोड़कर उसे खुश रखना। क्योंकि मेरी तो बहू भी यही है और बेटी भी यही"। आज गौतम को समझ आ गई थी कि माँ को उसने कभी खुश और मुसकुराते हुए नहीं देखा। सौम्या और गौतम दोनो की आँखो में आँसू थे। लेकिन दोनों ने मन ही मन माँ को खुश रखने का निर्णय ले लिया था।
दोस्तों, ये सच है कि जिस पर बीतती है, वही जानता है और दूसरे का दर्द समझ सकता है।

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