नवोदय और हैंडपंप



 
वो स्कुल बिल्डींग के नज़दिक वाला हैंडपम्प जो क्लास की खिड़कियों से दिखता था। नवोदय का पनघट ही तो था वो हैंडपम्प जिसपर लड़किया पनहारीनों की तरह बॉटल भरने आया करती थी ।

 युनिफार्म संभालते हुये ,अपने दुपट्टो को गिला होने से बचाते हुये, हैंडपंप के आसपास भरे हुये पानी या नम ज़मीन में धंसते जुतों में किचड़ न लगने देने की कोशिश में इधर-उधर जैसे-तैसे मस्ती करते हुये बॉटल भरती लड़किया।बतियाती-खिलखिलाती लड़कियों के समुह के उस कोलाहल में मानो हैंडपम्प का शोर भी संगीत हो जाता था । इधर लड़किया पानी पीती और क्लास की खिड़कियो में लगी लोहे के सरियों वाली जाली पर अपना माथा टीकाये , दिल संभाले एकटक देखते हुये लड़के तृप्त हो जाते। 

प्रेम अद्भुत लीलाओं से परिपुर्ण है , कही भी , किसी भी लम्हें में उमड़ आता है और प्रेमी आनंद की हिलोर में गोते लगाने लगता हेै।

ऐसा ही एक दिन था जब फिजिक्स का पिरियड था और सुत्रो के अनुसार खबर पक्की थी की फिजिक्स वाले सर नही आये है । पिरियड खाली जाने वाला था सब अपनी पढ़ाई में लगे थे की खिड़की के पास वाली  बैंचेस की रो में बैठा निर्मल चहका , "ऐ विनय ! देख ! देख तेरी वाली !"

विनय अपनी बैंच से उठा और खिड़की के पास जाकर खिड़की से माथा टीकाये हैंडपम्प पर पानी भरने आयी लड़कियों में स्नेहा को देखने लगा । बढ़ी  हुयी धड़कने, होठो पर शुद्ध मुस्कुराहट और नज़रो में बस निश्छल प्रेम , जिसमे वासना का लेसमात्र भी संक्रमण नही था। 

हैंडपंप पर हो रही लड़कियों की अठखेलियों में स्नेहा को तकने में मगन विनय को पता ही नही चला कब उस एक मिनट के समय में फिजक्स वाले सर क्लास में घुसे, बच्चे खड़े होकर  विश करते इससे पहले ही सर एक हाथ से बैठने ,दुसरे हाथ की उंगली होठ पर रखे हुये श श श्श्श्श ....! और आंखो से डराने का इशारा करते हुये  खिड़की की ओंर विनय के पीछे जाकर खड़े हो गये , खिड़की से देखा, माजरा समझा और विनय के कंधे पर हल्का सा हाथ रखा जिसे विनय ने दोस्त का हाथ समझ " डिस्टबेंस नही " कहते हुये हटा दिया। क्लास में सन्नाटा पसरा हुआ सबकी निगाहें खिड़की से तकते विनय और उसके पीछे काल की तरह खड़े फिजिक्स वाले सर पर टीकी थी , भय ,हास्य और चिंता के भावों का वो मिश्रित लम्हा धड़कने तेज़ कर रहा था।

जिन दो मिनटो में मैगी बन जाती है , उन दो मिनटो में  विनय का भर्ता बनने के परिणाम साफ दिखाई दे रहे थे।
क्लास में अचानक छायें इस सन्नाटें को विनय ने जल्दी ही समझ लिया फिर भी बहुत देर हो चुकी थी। वो पल्टा तो सामने साक्षात सर ,आंखे फाड़े , भौंहें उचकाते हुये , वध कर देने की मुद्रा में व्यंग्य भरी   जानलेवा मुस्कुराहट लिये खड़े थे । 

सर ने न कोई प्रश्न किया या विनय ने कोई बहाना बनाने की कोशिश की । जैसे चुहेदानी में फंसा चुहा, आंखों में अपने अंजाम का भय लिये टुकुर टुकुर ताकता है वैसे ही सर झुंकाये किसी मासुम सा मुंह विनय वही जम गया ।
आगे क्या हुआ ? मैं नही बताऊंगा आप बेहतर जानते है।

जैसे पनघट से पानी भर कर लौटती पनहारीनो को सताने के लिये  कंकरीया मारकर उनकी मटकिया फोड़ दी जाती थी यहाँ बॉटल्स नही फुटी, हाँ मगर जो कुछ टुटा-फुटा, हॉस्टल पहुचकर निर्मल द्वारा मित्र धर्म का पालन करते हुये उसपर बाम-विक्स मलकर मरम्मत की कोशिश की गयी।

हैंडपम्प वाला पनघट अभी भी आबाद है, खिड़कियों की जाली पर अब भी माथे टीकते है। हैंडपंप से निकलते पानी में बॉटल्स या चुल्लु लगाकर पानी की प्यास बुझती और प्रेम तृप्त होता रहता है।

~~~Jagat~~~

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